वह स्कूल जाने के लिए तेयार हो रहा था | दरवाजे पर घंटी बजी और मां ने जोर से किचन में से कहाँ 'विजय देखो दरवाजे पर कौन है' | विजय दौड़कर गया और दरवाजा खोला | एक मिनट के लिए वह पीछे हटा | एक पुलिस अधिकारी दरवाजे पर मौजूद था | उसकी आँखे चमचमाते ब्राउन जूतों, करीने से प्रेस पेंट, बीचोंबीच लोगो लगे चौड़े बेल्ट, खाकी शर्ट के फ्रंट पॉकेट पर लगी जगदीश दावर के नाम की नेम प्लेट से होती हुई चेहरे पर पहुंची तो देखा सामने चाचा खड़े हैं | उन्होंने उसी दिन पुलिस फाॅर्स ज्वाइन की थी |
डिप्टी एसपी जगदीश डावर के पिता से आर्शीर्वाद लेने आये थे | दसवीं कक्षा के केंद्रीय स्कूल के छात्र विजय ने उस दिन एक शपथ ली कि बड़े होकर पुलिस फाॅर्स ज्वाइन करेगा लेकिन, वह नहीं जनता था कि पिता की पुलिस फाॅर्स के बारे में राय कुछ और है | वे चाहते थे डे बीटा इंजिनियर बने, जैसा कि देश के अधिकतर पिता चाहते है | उसने परीक्षा भी दी और बेस्ट इंजिनियर कोल्लागे में चयन हो गया लेकिन, एडमिशन नहीं लिया | उस सुबह सीधे वे अपने पिता के पास गए और कहा, 'मुझे सिर्फ चार साल का समय दीजिये और अगर मैं अपने मिशन में फ़ैल हो गया तो जो आप कहेंगे वो करूँगा' | पिता शायद बेटे की आँखों में संकल्प और दिल में आग देखी, इसलिए उसे अपना करियर चुनने का मौका दे दिया |
उसने बीए में एडमिशन ले लिया और पब्लिक सर्विस कमीशन परीक्षा के लिए तेयारी शुरू कर दी | पूरा फोकस पढाई पर किया | पिता अर्जुन सिंह डावर ने उसके सपने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | उन्होंने न सिर्फ बेटे को उसका करियर चुनने की आजादी दी, बल्कि घर पर जब कोई मेह्मात आता तो उसका परिचय यह कहकर कराते कि यह लड़का कल का शानदार अफसर बनेगा | यह उनका अनोखा तरीका था विजय को अपना लक्ष्य याद दिलाने का | ऐसा वो हफ्ते में दो बार करते | लेकिन उसके इस सुनियोजित करियर में एक दुश्मन सामने आया | उसके सभी क्लासमेट किसी न किसी जॉब के लिए चुन लिए गए और इस वजह से विजय में एक असुरक्षा का भाव आ गया | विजय ने वही गलती की जो अधिकतर बच्चे कभी न कभी करते हैं |
समाज से 'वेल-सेटल्ड' का सर्टिफिकेट पाने और पुलिस यूनिफार्म पहनने का सपना पूरा करने के लिए उसने स्थानीय सब इंस्पेक्टर के जॉब के लिए आवेदन किया और इसके लिए चुन भी लिया गया | विनल फिजिकल परीक्षा के दौरान अंकल जगदीश ने उसे कतार में खड़े देखा | उन्होंने उसे कतार से बाहर खींचा और टेस्ट में शामिल होने की इजाजत नहीं दी | उन्होंने उसे याद दिलाया कि वह अपने सपने से समझौता कर रहा है | विजय ने फिर परीक्षा की तेयारी शुरू की लेकिन, अब अपने अंकल की देखरेख में | बाहर जाना और कॉलेज लाइफ का सोशल मनोरंजन पूरी तरह बंद कर दिया | विजय अपने प्रति सख्त हो गया और नतीजा यह हुआ कि परीक्षा के ठीक पहले बीमार हो गया |डॉक्टरों ने कहा कि वजह तनाव है और उसे परीक्षा को सामान्य तरीके से लेना चाहिए लेकिन, विजय इस बार मौका गंवाना नहीं चाहता था | पहले प्रयास में ही उसने परीक्षा पास कर ली | परिवार की सलाह थी कि डिप्टी कलेक्टर को पहली प्राथमिकता दे, लेकिन उसके डिप्टी एसपी चुना, क्योंकि चाचा की तस्वीर दिमाग में अब भी ताजा थी | मिलिए विजय डावर से | एडिशनल एसपी (ए आई जी ) उज्जैन, मध्यप्रदेश | उन पर पिछले साल आयोजित कुम्भ मेले की सुरक्षा की भारी-भरकम जिम्मेदारी थी |
#ManagementFunda
फंडा यह है कि अपने सपनों को पेरेंट्स के सामने रखने का साहस होना चाहिए, साथ ही उन्हें सच करने का भी | अगर आप साफ़ करियर रोड माप सामने रखेंगे तो पेरेंट्स कभी आपके रास्ते में नहीं आएंगे |
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