स्टोरी 1.
वे हार्वर्ड जैसी दुनिया की किसी मशहूर उनिवेर्सित्य से एमबीए नहीं है | वे तो किसी बढे इंटरनेशनल कॉन्वेंट स्कूल में भी पढ़े नहीं थे | आधी स्कूली पढाई तो उन्होंने मात् भाषा में ही की थी | उस स्कूल में जाने के लिए उन्हें तीन किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था, क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक दशा ऐसी नहीं थी कि उनके आने-जाने के लिए किसी वाहन कि व्यवस्था कर सके | और आखिरी बात यह है कि वे पढ़ने में भी ऐसे छात्र नहीं थे कि जिस पर स्कूल और घर वाले गर्व करें | लेकिन वे हमेशा उन संबंधों को लेकर प्रतिबद्ध थे, जो उन्होंने जीवन में बनाए थे, और वे वह सब करते जो रिश्तों कि मांग होती | अपने शरीर से उनका रिश्ता यह चाहता था कि उसे चुस्त रखने के लिए वे व्यायाम करें | यही वजह है कि 53 साल कि उम्र में वे न सिर्फ मुंबई बल्कि न्यूयोर्क, एम्सटरडर्म, प्राग, टोक्यो, स्कोटहोम और साल्जबर्ग तक में मेराथन दोढ़ते है | वे रोज सुबह दौड़ने जाते है और पके बाल छोड दे तो वे 53 के नहीं लगते | यदि उनके कुत्ते ने चाहा कि आखिरी सांस लेते समय वे उनके पास रहे तो मालिक अपने बीगल नस्ल के कुत्ते रे के लिए अमेरिका से उड़कर आ गए | रे और उसका मालिक जानते थे कि केंसर किसी को नहीं बख्शता | वे पारिवारिक मूल्यों के साथ पले-बढे थे | उनका परिवार सारी रश्मे पूरी धार्मिकता के साथ निभाता था | वे और उनके भाई सारे समारोह एकदम तमिल परंपरा के मुताबिक निभाते थे लेकिन, वे कुछ अलग ही व्यक्ति है | उन्होंने सोचा कि यदि उन्हें हर रस्म इतनी धार्मिकता से निभानी है तो क्यों न संस्कृत सीखी जाए और फिर इनका अक्षरश: पालन करें | उन्होंने यह बहुत आसानी से सीख लिया और वेदों कि ऋचाओं में महारत हासिल कर ली | यह उनकी शेली है |
अपने कार्यस्थल पर यदि उनके एम्प्लोयर वृधि और अत्यधिक मुनाफा चाहते है तो अपनी शेली में यह कर दिखाते है | अपने नेतृत्व में उन्होंने छह अरब डॉलर की कंपनी को 16 अरब डॉलर की कंपनी बना दिया | उन्होंने इतनी तेजी से पंख फैलाए कि शनिवार को उनके एम्प्लायर टाटा सन्स और रतन टाटा के सामने उन्हें सौ अरब डॉलर के पूरे ग्रुप का चेयरमैन चुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं था | हाँ, हम नटराजन चंद्रशेखरन कि बात कर रहे है | टाटा संस् में इस समय सबसे चर्चित चेहरे | जब वे टीसीएस में थे तो मुझे उनसे मिलने के कई अवसर मिले थे और उनके बारे में मैं यही कहूँगा कि वे मुझे अब तक मिले सबसे प्रतिबद्ध व्यक्ति रहे है | इसी प्रतिबद्धता ने उन्हें शीर्ष पर पहुँचाया बावजूद इस तथ्य के कि न तो वे टाटा परिवार से है और न ही वो पारसी धर्म को मानने वाले |
स्टोरी 2
अशोक पंवार रोज सुबह अपनी दुकान खोलने के लिए 10 किलोमीटर पैदल चलकर जाते है | उनकी दुकान महाराष्ट्र के बीड जिले कु कुम्भेफल गाँव में है | जिला अवैध रूप से गर्भस्थ शिशु के लिंग कि पहचान कराने, महिला भ्रूण हत्या और बिगड़े हुए लिंगानुपात के लिए कुख्यात है | उन्होंने छह साल तक बाल काटने की दुकान पर सहायक का काम करके वह काम सीखा | उन्होंने विवाह किया और इश्वर से प्रार्थना की कि वे बेटी के पिता बने | जब उनकी प्रार्थना कबूल हुई तो वे अपनी दुकान खरीदने में कामयाब हुए | उन्हें लगा कि देवी ने उनकी दो प्रार्थनाए एक साथ सुनी | इसलिए उन्होंने खुद से एक और वादा किया | उन्होंने नवजात बच्चियों के पिता को छह माह तक बाल काटने व ढाढी बनाने की मुफ्त सुविधा देने का निर्यण लिया | इसी तरह परम्परा के मुताबिक़ नवजात बच्चों का मुफ्त में मुंडन करने कि घोषणा भी की |
29 वर्षीय पवार बाल काटने के 50 रूपये लेते है और रोज 16 घंटे कड़ी म्हणत करके में करीब 10 हज़ार रूपये कमा लेते है और इसके बावजूद वे गाँव में बच्चियों की संख्या बढाने के अच्छे उद्देश्य के लिए कई सेवाएं मुफ्त देते है | उनकी उद्देश्य को समर्थन देने के लिए कई लोगों ने उनकी सेवाएं लेने का निर्यण लिया है |
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